Bhola Film Review: भोला समीक्षा: अजय देवगन की रीमेक ने ‘कैथी’ की कहानी को सफलतापूर्वक मानवीय दृष्टिकोण से पेश किया है।

भोला समीक्षा: अजय देवगन की रीमेक ने ‘कैथी’ की कहानी को सफलतापूर्वक मानवीय दृष्टिकोण से पेश किया है। फिल्म ‘भोला’ में दर्शकों को एक अनाथालय में रहने वाले पिता और बेटी की दिल छू लेने वाली कहानी सुनाई गई है। फिल्म ने राजस्थान के एक छोटे से गांव में घूमने का मौका दिया जहां लोग नवरात्रि के मौके पर थाली भर गोश्त खाते हैं।

पिछले साल हिंदी फिल्म रीमेक के कुछ दर्शनीय फिल्मों में से केवल ‘दृश्यम 2’ का टिकट खिड़की पर बिका है। उनके बावजूद, ‘भोला’ की रीमेक इस साल की सबसे बड़ी फिल्म में से एक है। जब फिल्म का पहला टीजर थ्रीडी में सिनेमाघर में दिखाया गया तो अजय देवगन भी मौजूद थे। जब पूछा गया कि फिल्म का शूटिंग थ्रीडी में हुई है या टूडी में, तो अजय देवगन ने उस परिस्थिति का मजाक उड़ाया जहां फिल्म इन दिनों वास्तव में थ्रीडी में नहीं शूट होती हैं।

Bhola Film Review: भोला समीक्षा: अजय देवगन की रीमेक ने ‘कैथी’ की कहानी को सफलतापूर्वक मानवीय दृष्टिकोण से पेश किया है।

फिल्म के निर्देशक और संवाद लेखक लोकेश कनगराज ने अजय देवगन के साथ मिलकर फिल्म के हिंदी रीमेक को नए दिशानिर्देश दिए हैं। वे फिल्म की मूल कहानी में थोड़े बदलाव करने के साथ-साथ अजय देवगन के चरित्र को भी मूल कहानी से अलग बनाने का प्रयास करते हैं। फिल्म का अंत भी मूल कहानी से थोड़ा अलग होता है।

भोला फिल्म के अभिनेता अजय देवगन को मुख्य भूमिका मिली है। उन्होंने इस फिल्म में अपनी किरदार को बहुत ही जबरदस्त ढंग से निभाया है। उनके अभिनय को देखकर लगता है कि वे अपने किरदार में बिल्कुल विराजमान हो गए हैं। इस फिल्म में अजय देवगन को अपनी किरदार को निभाने के लिए बहुत समय लगा होगा। उन्होंने इस फिल्म के लिए बहुत तैयारी की होगी जो उनके अभिनय में स्पष्ट दिखती है।

फिल्म की कलाकार विशेषताओं में से एक उसकी संगीत है।

अपराधियों के नंगे नाच से भरा उत्तर प्रदेश: मानवता के आधार पर फिर से देखें ‘भोला’ फिल्म की कहानी”

उत्तर प्रदेश के अपराधियों की हिंसा ने एक बार फिर देश के सबसे बड़े राज्य को बदनाम कर दिया है। फिल्म ‘भोला’ की मूल कहानी उसी राज्य में है, जहां एक रहस्यमयी इंसान की पुलिस की मदद करने की कहानी है। लेकिन फिल्म ‘कैथी’ की मूल आत्मा ‘भोला’ से अलग होती है। यहां एक देहाती किस्म का इंसान स्टाइलिश बदमाश बन जाता है। इसलिए, हमें इस फिल्म को मानवता के आधार पर फिर से देखना चाहिए। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अपराधियों के पंख फड़फड़ाते हुए बुलडोजर चलते हुए देखे जा रहे हैं। इसलिए, हमें इस फिल्म को मानवता के आधार पर देखना चाहिए, जो हमें याद दिलाएगा कि अपराधियों की नहीं, बल्कि मानवता की जरूरत है।

यह आर्टिकल फिल्म ‘भोला’ के बारे में है जिसमें इसकी पटकथा और संवादों के माध्यम से मानव आधारित विषयों पर चर्चा की गई है। इस फिल्म में भोला नाम का किरदार है जो लालगंज नामक स्थान पर रहता है और उसके जीवन के अनुभवों को दर्शाता है।

फिल्म में भोला अपने ऊंचाहार के काल्पनिक जंगलों में भटकता है और उसे अन्य व्यक्तियों से बात करनी पड़ती है जो उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके बाद भोला शहर में जाता है और अपने अनुभवों के बारे में बताता है।

फिल्म में संवादों को बहुत महत्व दिया गया है। संवाद गोल गोल हैं और उनमें भोजपुरी बोली का उपयोग किया गया है। इसके बावजूद, संवादों को वजन डालने की कोशिश की गई है, लेकिन यह खोखले लगते हैं। फिल्म में विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई है जैसे आतंकवाद, अपराध, और समाज के बंधन।

फिल्म “भोला” में नायक भोला नाम का है और रामनवमी के दिन फिल्म रिलीज हुई थी। नायक भोला एक भूखा शख्स है जो फिल्म में खाने में थाल भर गोश्त खाता दिखता है। मूल फिल्म में भी नायक एक ऐसा ही दृश्य करता है जब वह एक थाली भर चावल खाता है। दूसरी ओर, नायक काशी में जनेऊ पहनकर पूजा करते हुए दिखता है जब वह बार बार माथे पर भस्म लगाता है।

मूल फिल्म में, 1000 करोड़ रुपये की हेरोइन पकड़ने वाले दस्ते का मुखिया पुरुष पुलिस अफसर होता है, जबकि इस फिल्म में उसे एक आईपीएस अफसर डायना बना दिया गया है ताकि तब्बू को इस फिल्म में लाया जा सके। फिल्म में तब्बू की एंट्री जनेउदार होती है और एक्शन दृश्य भी इसे खासतौर पर प्रभावी बनाने के लिए रखा गया है। हालांकि, इस दृश्य का संयोजन इस तरह का धमाकेदार असर नहीं कर पाता।

अजय देवगन द्वारा निर्देशित चौथी फिल्म “भोला” फिल्म “यू मी और हम”,

संजय मिश्रा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘भोला’ में अजय देवगन और तब्बू की जोड़ी पिछली दो फिल्मों में सफल रही है। फिल्म ‘विजयपथ’ ने उनके संयोग को और अधिक अभिवृद्धि दी। फिल्म में दोनों के बच्चों को लेकर दर्द का रिश्ता जोड़ने की कोशिश की गई थी, लेकिन उसका कोई अर्थ नहीं था। भोला की प्रेम कहानी भी फिल्म की गति में अवरोधक थी।

अजय देवगन और तब्बू के अलावा, अभिनय के मामले में संजय मिश्रा ने भी सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। दूसरे कलाकार गजराज राव और दीपक डोबरियाल ने फिल्म में ओवर एक्टिंग की है। विनीत कुमार ने निठारी का किरदार निभाया, लेकिन उसे ठीक से विकसित नहीं किया गया।

फिल्म के क्लाइमेक्स में भोला का तांडव रखा गया है, जो खून खराबा पसंद करने वालों के लिए रुचिकर हो सकता है, लेकिन यह फिल्म की कहानी के अनुकूल नहीं है।

“भोला” फिल्म की अधिकतर शूटिंग रात की है और सिनेमैटोग्राफर असीम बजाज ने इन दृश्यों को प्रभावी बनाने के लिए बहुत मेहनत की है। फिल्म के एक्शन दृश्य रचने में आर पी यादव ने भी अच्छी मेहनत की है, जो फिल्म को आगे बढ़ाने में मदद करती है।

लेकिन फिल्म में केवल एक्शन से कुछ नहीं होता है। संगीत विभाग में फिल्म फेल हो जाती है। फिल्म में कोई गाना यादगार नहीं है और इंटरवल से पहले गाया गया गाना भी दर्शकों के भावनाओं में उफान नहीं ला सकता।

फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक सबसे कमजोर पहलू है जो फिल्म देखने के अनुभव को बहुत खराब करता है। यदि फिल्म 20 मिनट से कम होती तो यह और भी अधिक असरदार होती। दो घंटे 24 मिनट लंबी इस फिल्म की दृश्यों की लंबाई कम की जा सकती थी।

Leave a Comment